
राग दरबारी पढ़ते हुए छुआछूत के प्रति जुगुप्सा नहीं होती, हंसी आती है. पर मुर्दहिया का उद्धरण पढ़ कर क्रोध और ग्लानि होती है.
The post क्या होता अगर एक दलित ‘राग दरबारी’ लिखता? appeared first on ThePrint Hindi.
राग दरबारी पढ़ते हुए छुआछूत के प्रति जुगुप्सा नहीं होती, हंसी आती है. पर मुर्दहिया का उद्धरण पढ़ कर क्रोध और ग्लानि होती है.
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